15 दिनों तक नहीं होगा दर्शन,काढ़े का लगेगा भोग,जलाभिषेक के लिए काशीवासियों के साथ अन्य राज्यों के लोग शामिल
वाराणसी। धर्म नगरी काशी में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ के जलाभिषेक की परंपरा है। गर्मी से परेशान भक्त हर साल गंगा जल से भगवान स्नान कराते है। भक्तों द्वारा कराए जानें वाले इस स्नान के कारण अगले दिन भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार हो जाती हैं और फिर पूरे 15 दिन वो भक्तों को दर्शन नहीं देते है। वाराणसी के अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरातत्व विभाग के अनुसार 1711 ईसवी का है। अस्सी स्थित भगवान जगन्नाथ के अतिप्राचीन मंदिर में भोर से ही भक्त प्रभु को जल,तुलसी की माला और फल चढाया। यह सिलसिला देर शाम तक जारी रहा। मंदिर गर्भगृह के छत पर सिंहासन पर विराजमान भगवान ने लोगों को दर्शन दिया। भगवान को आज सफेद वस्त्र पहनाया गया। यहां जलाभिषेक करने के लिए काशीवासियों के साथ साथ अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंचे। मान्यता है कि जो जगन्नाथ पुरी मंदिर नहीं जा पाते हैं उनको काशी में ही उतना फल मिलता है भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित ने बताया कि जेष्ठ पूर्णिमा के दिन प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी भगवान का जलाभिषेक किया गया। यहां भगवान का इतना जलाभिषेक करते हैं कि भगवान लीला करने के लिए अस्वस्थ हो जाते हैं। इसके बाद मंदिर 15 दिनों के लिए बंद हो जाता है। भगवान जगन्नाथ को काढ़े का भोग लगाया जाता है। जिसे प्रसाद के रूप में भक्त प्राप्त करते हैं।
पांच जुलाई तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे। इसके बाद श्वेत वस्त्र में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र भक्तों को दर्शन देंगे।प्रभु के प्रकट होने पर मंगला आरती स्तुति, भजन के साथ ही श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ होगा। इसके बाद आठ बजे नैवेद्य स्वरूप परवल का रस दिया जाएगा। छह जुलाई को भगवान के विग्रहों को डोली में विराजमान कर यात्रा निकाली जाएगी।