श्री संकटमोचन संगीत समारोह की चतुर्थ निशा में कार्यक्रम का आनंद लेते कुंवर अनंत नारायण सिंह, संकटमोचन के महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र एवं पुष्करनाथ मिश्र।
वाराणसी (सन्मार्ग)। वाराणसी, सन्मार्ग। बनारस के सुप्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर में हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा पर आयोजित होने वाला संकट मोचन संगीत समारोह कई मायने में विशेष है, परन्तु सबसे बडी विशेषता है कलाकार व कला रसिकों का एकाकार हो जाना। जो विश्व में कहीं नहीं दिखता। छह दिवसीय आयोजन की चौथी निशा में मंगलवार होने के नाते कुछ ज्यादा ही भीड रही, जो दर्शन-पूजन के लिए आये हुए थे वह भी मंच की ओर चले आये और कारवां बनता ही गयो जो भोर तक बना रहा। यह है इस स्थान की विशेषता।
कार्यक्रम का शुभारंभ हुए स्वतंत्र तबला वादन से महाराज कुंवर अनंत नारायण सिंह के पुत्र प्रद्युम्र नारायण सिंह ने तीन ताल में वादन किया। इनके साथ आनंद किशोर मिश्र ने संवादिनी पर साथ दिया।
कार्यक्रम की दूसरी प्रस्तुति में भोपाल से पधारीं श्रीमती वी . वंदना से नृत्य का श्री गणेश किया। उसके पश्चात संकट मोचन नाम तिहारो पद पर आधारित नृत्य में पारंपरिक कथक शैली की प्रस्तुति कर चैती से नृत्य को विराम दिया। इनके साथ तबले पर सलीम अल्हावाले, सारंगी पर जाकिर हुसैन व अमित मलिक ने वायलिन पर अच्छी सहभागिता निभाकर नृत्य को प्रभावशाली बना दिया।
तीसरी प्रस्तुति में उस्ताद राशीद खां के शिष्य पुत्र अरमान खां ने अपनी प्रस्तुति से उस्ताद जी की याद दिला दी। इन्होंने गायन की शुरुआत राग जोग से की। झपताल-तीनताल की बंदिशें गाने के पश्चात कई पश्चिम अंग की ठुमरियों से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। इनके गायन की विशेषता रही चैनदारी। जिस इत्मीनान से अपनी प्रस्तुति को आपने स्वर-ताल से सजाया उससे यह लगा कि एक उज्ज्वल नक्षत्र साबित होने वाले हैं। इनके साथ तबले पर शुभ महाराज, संवादिनी पर नचिकेता विपुल हरिदास व सारंगी पर विनायक सहाय ने सहभागिता की।
चौथी प्रस्तुति में मुंबई से पधारी श्रीमती अमृता चटर्जी ने गायकी के स्वरों को बिखेरते हुए राग पूरिया कल्याण में एक ताल व तीन ताल में दो बंदिशें गाने के पश्चात ठुमरी व दादरा गाकर गायन को विराम दिया। आपके साथ तबले पर बिलाल खां व संवादिनी पर मोहित साहनी ने अच्छी भागीदारी निभायी।
पांचवीं प्रस्तुति में विख्यात भजन गायक भजन सम्राट पं. अनूप जलोटा ने मंच पर बैठते ही श्रोताओं में एक अलग स्फूर्ति का संचार हो गया। कारण था टी-सीरित कैसेट का पुन: प्रसारण आपने भजन माला का एक-एक अध्याय खोलते हुए वह तमाम भजनों का पुन: प्रसारण किया जो करीब हर श्रोताओं के दिलो दिमाग में घर कर गया है। अनूप जलोटा गाते रहे श्रोता करतल ध्वनियों के साथ झूमते रहे। यह है इनकी प्रसिद्धि इनका क्रेज। इनके साथ इनके साथी कलाकारों ने जमकर साथ निभाया।
छठवीं प्रस्तुति में कोलकाता से पधारे विश्वविख्यात सरोद वादक पं. तेजेंद्र नारायण मजुमदार ने सरोद पर राग जैजवन्ती की अवतारणा कर श्रोताओं को तृप्त कर दिया। इन्होंने आलापचारी के पश्चात धमार व भद्राताल में गतकारी करने के पश्चात भजन से वादन को विराम दिया। इनके वादन की सबसे बडी विशेषता है कि ये समय के अनुसार रागों का चयन कर श्रोताओं को आनंदिरत कर देते हैं। इनके साथ शुभ महाराज अपनी प्रसिद्धि के अनुरूप तबले पर सहभागिता की।
सातवीं प्रस्तुति में मुंबई से पधारे चहेते सितार वादक पं. नीलाद्री कुमार का सीतार वादन रहा। आपसे इस समारोह के प्रत्येक श्रोता भलीभांति परिचित हैं इसलिए आज भी इनकी इतनी चाह है कि लोग नाम सुनते ही प्रफुल्लित हो जाते हैं। यह बिरले ही देखने को मिलता है। पं. नीलाद्री कुमार ने प्रारंभ में राग कौशिक कान्हडा में आलापचारी के पश्चात तीन ताल में विलम्बित द्रुतगतकारी कर राग को विराम दिया। आपने वादन को अपनी प्रचिलित धुन से विराम दिया। इनके साथ सत्यजीत तलवरकर ने तबले पर ताल के माध्यम से स्वरों को बिखेरा।
अंतिम प्रस्तुति में मुंबई से पधारे विख्यात गायक सौनक अभिषेकी और पुत्र अभेद अभिषेकी ने युगल गायन प्रस्तुत किया। इन लोगों ने राग शिवमत भैरव में दो बंदिशे क्रमश: एकताल व तीनताल में गाकर प्रथम अध्याय को विराम देकर एक भजन से चौथी निशा को पूर्ण विराम दिया। इन लोगों के गायन में इनके पिता पं. जितेंद्र अभिषेकी की छाप सुनायी पडी इनके साथ तबले पर रजनीश मिश्र व संवादिनी पर पं. धर्मनाथ मिश्र ने कुशल भागीदारी निभायी।