सोनू एक आठ साल का लड़का था। इकलौता होने के कारण वह थोड़ा शरारती और जिद्दी हो गया था। जानवरों को मारने में उसे बड़ा मजा आता था।
एक दिन सोनू अपने घर के आगे खेल रहा था। तभी एक आवारा कुत्ता वहां आकर बैठ गया। सोनू ने एक पत्थर उठाकर उसे जोर से मारा, कुत्ता जोर से चिल्लाता हुआ वहां से भागा, सोनू को बड़ा मजा आया।
इसी तरह एक दिन उसके घर में एक बिल्ली बैठी थी, सोनू ने अपना जूता बिल्ली को फेंक कर मारा, बिल्ली दर्द से कराह कर भागी तो उसे बड़ा मजा आया।
ऐसा करते एक दिन उसकी दीदी जो उससे चार साल बड़ी और काफी समझदार थी, उसने देखा तो बड़ी डाँट लगाई पर सोनू पर कोई असर ही नहीं हुआ। बस वह अपनी दीदी के सामने किसी को न मारता।
एक दिन वह एक पुरानी इमारत के बरामदे में खेल रहा था, तभी उस इमारत से एक पत्थर सोनू के ऊपर गिरा और सोनू के सिर से खून बहने लगा।
सोनू को अस्पताल ले जाया गया। उसके सिर पर पट्टी हुई। डॉक्टर ने दस दिन सोनू को बिस्तर पर रहने को कहा। सोनू को काफी दर्द और परेशानी हुई। उसने अपनी दीदी से कहा कि उसे बहुत दर्द हो रहा है। दीदी ने कहा, “सोनू, जब तुम जानवरों को मारते हो तब उन्हें भी दर्द होता है पर वे अपना दर्द ना किसी को बता पाते हैं ना डॉक्टर के पास जा पाते हैं।”
दीदी की बात सुनकर सोनू की आँखों में आंसू आ गए। उसने कहा, “दीदी, मैं अब कभी किसी जानवर को तंग नहीं करूंगा।”
सोनू को अपनी गलती का एहसास हो चुका था। जब सोनू ठीक हो गया तो वह जानवरों को रोटी और बिस्कुट डालने लगा। उसमें आए इस बदलाव से सब हैरान थे और खुश भी।