आज के समय में सच्चाई का फल (Sachchai ka Fal) बहुत प्रेरणादायक कहानी है। एक राज्य का राजकुमार अपनी युवावस्था को प्राप्त हो चुका था। राज्याभिषेक हेतु उस राजकुमार को विवाहित होना अनिवार्य था। इसी बात का हल निकालने हेतु राजा ने सभा बुलाई। राजसभा मे राजकुमार ने कहा, “मैं अपनी जीवन संगिनी की खोज स्वयं करना चाहता हूँ”। राजकुमार की बात सुनकर, मंत्री ने सुझाव देते हुए कहा, “क्यों ना राज्य एवं आसपास के क्षेत्रों से सभी विवाह योग कन्याओं को आमंत्रित किया जाए। उनमें से जो राजकुमार को अपने योग्य लगे वे उनका चुनाव कर लें”।
राजा को यह बात अच्छी लगी। राजकुमार भी सहमत हुए। राजभवन से घोषणा की गई कि, ‘इस मास (महीने) के अंतिम दिन राज भवन में सभी विवाह योग कन्याएँ अपने अभिभावक के संग आमंत्रित हैं। इस उत्सव में राजकुमार अपने लिए जीवनसाथी का चुनाव भी कर सकते हैं।’
जीवनसाथी का चुनाव
यह समाचार नगर में आग की तरफ फैल गया। युवतियों के बीच बहुत उत्साह था। किसी को राजकुमार पसंद थे, तो किसी को रानी बन जाने का सपना था। किसी को धन संपत्ति नौकर चाकर की लालसा थी। किसी को अच्छे कपड़े-जेवर की लालसा तो किसी को ओहदे की लालसा। सभी युवतियां अपनी-अपनी ओर से पूर्ण प्रयास कर रही थी कि वह इस एक महीने में अपने आप को सबसे ज्यादा सुंदर और आकर्षक दिखें। सब ही चाहती थी कि वे राजकुमार की पसंद बने।
राजवैद्य की सहायिका भी राजनगर में ही रहती थी। जिसकी बच्ची तारा बचपन में महल में आती जाती रही है। तारा और राजकुमार का बचपन लगभग एक ही समय पर था। बचपन में तारा राजकुमार के साथ खेलती भी थी। जब तारा 12 वर्ष की थी तब तारा की माता ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी। जिसके कारण तारा का महल में आना जाना बंद होगया था। तारा बहुत समझदार थी। अब वो बड़ी हो चुकी थी। राज्य के बड़े बड़े गुरुओं से विद्या प्राप्त की थी। जब यह समाचार तारा की मां को मिला तब उन्होंने तारा से कहा, “तुम्हें भी तो राजकुमार इतने प्रिय हैं। तुम भी जाओ। क्या पता राजकुमार अपनी सखी को पहचान लें”।
मां को समझाना
अपनी माता की भोली बातों को सुन कर तारा मुस्कुराई। फिर अपनी माता से कहा, “माँ! तुम भी कितनी भोली हो। राजकुमार को मेरी तरह न जाने कितनी युवतियां पसंद करती हैं। बहुतों ने तो उनके साथ बचपन मे खेला भी होगा। राजकुमार को सब स्मरण कहाँ होंगे।” इसपर माता ने कहा, “तुम भी जाती तो मुझे अच्छा लगेगा”। माता की बातें सुन कर तारा ने कहा, “वैसे तो वहां जाने का कोई फायदा नहीं है। परंतु फिर भी मेरी माता की इच्छा है तो मैं अवश्य जाऊंगी। कुछ हो न हो हम जलसे का आनंद अवश्य लेंगे।”
शादी के लिए युवतियों का जाना (Sachchai Ka Fal)
जलसे का दिन आ गया। राज भवन स्वर्ग जैसा सजा हुआ था। सभी कन्याएँ सज धज कर परियों जैसी लग रहीं थीं। चारों तरफ चका चौंध थी। बहुत ही सुंदर सजावट, अलग-अलग तरह के पकवान-व्यंजन मनोरंजन के कई साधन। कहीं नृत्य तो, कहीं गीत संगीत। वहीं हजारों युवतियां अपना भाग्य परखने आई थी। परंतु, आयोजन में राजकुमार किसी युवती से मिले ही नही।
जब आयोजन समाप्ति की ओर पहुंचा तब राजकुमार ने एक घोषणा की। उन्होंने कहा, “सभी युवतियों को एक-एक बीज दिए जाएं। सभी युवतियां इन बीजों से पौधे उगाएं। 6 मास बाद जब इन पौधों में फुल आने का समय होगा, तब हम गुलदस्तों की प्रतियोगिता रखेंगे। जिसमे सभी युवतियां अपने परिचय देंगी और साथ मे अपने बागवानी की अनुभव साझा करेंगी। जिन भी युवती के गुलदस्ते एवं बागवानी की बात से मैं पूर्ण सहमत हो जाऊंगा, मैं उनको अपनी जीवन संगिनी चुन लूंगा। याद रहे आप अपने काम को स्वयं करेंगी। किसी से सहायता नही लेंगी। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।”
तारा को बीज मिलना
तारा बीज को लेकर बहुत उत्साहित थी। उसने अपनी माँ से कहा, “माँ! तुम्हे नही लगता कि राजकुमार आज भी बहुत अच्छे और सच्चे है।” तारा की माँ ने कहा, “ हाँ! वो तो है। परंतु अब तुम पौधे लगाने पर ध्यान दो। कहो तो मैं तुम्हारी कुछ सहायता करूं।” तारा ने कहा, “नही माँ! राजकुमार ने सहायता लेने से मना किया है। अगले दिन सुबह ही, घर के पीछे, मिट्टी खोद कर तारा ने बीज बो दिया। उसमे पानी भी डाल दिया। प्रतिदिन तारा सुबह उठ देखने जाते की पौधा ऊगा या नही। 15-20 दिन बीत गए तब भी पौधा नही ऊगा। तारा मायूस होगई। उसकी माता भी दुखी थी कि, न जाने तारा ने बीज लगाने में क्या गलती कर दी? जिसके कारण पौधा ऊगा ही नही। धीरे धीरे 6 मास बीत गए पर पौधा नही ऊगा।
गुलदस्ता प्रतियोगिता
एक दिन राजमहल के तरफ से घोषणा आयी कि, मास के अंतिम दिन गुलदस्ता प्रतियोगिता होगी। जिन भी युवतियों को बीज मील थे, वे सभी अपने अभिभावक के साथ आमंत्रित हैं। प्रतियोगिता के दिन सभी युवतियां अपने अभिभावकों के साथ सज धज कर गुलदस्ता लेकर राजभवन पहुंच गईं। सभी युवतियों एक एक कर राजकुमार से मिलीं। सब ने पहले अपना परिचय दिया पहले का नाम बताया। फिर अपना गुलदस्ता राजकुमार को देकर, अपने बागवानी की अनुभव साझा किया। इधर तारा के पड़ोसियों से उसे सलाह दी कि माली से फूल ले कर गुलदस्ता बना लो। परंतु तारा बिना गुलदस्ते के ही राजभवन आने का निश्चय किया।
अब तारा की बारी आई। उसने राजकुमार को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। तारा ने राजकुमार से कहा, “हे राजकुमार! मेरा नाम तारा है। मैंने राज्य के महाविद्यालय से उच्च शिक्षा पुरी की है। मैंने राज्य के महान गुरुओं से समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र एवं गणित का उच्चतम ज्ञान प्राप्त किया है। परंतु मुझे खेती और बागवानी का ज्ञान नहीं है। इस कारण मेरे अत्यंत प्रयास करने के बाद भी, मैं पौधे को उगाने में असफल रही। अतः मैं आपके लिए गुलदस्ता नहीं बना सकी। इसके लिए मुझे आप क्षमा करें। राजकुमार ने तारा की बात सुन कर तारा से पूछा, “फिर, आप यहां क्यों आईं हैं?” तारा ने कहा, आपने बीज दिलवाए थे। उस बीज का क्या हुआ, मैं इसके लिए उत्तरदायी हूँ। इसलिए मैं यहाँ उपस्थित हूँ। राजकुमार ने मुस्कुराकर कर तारा की सच्चाई को सराहा (Sachchai Ka fal)।
राजकुमार ने अपना जीवन साथी चुना (Saachchai Ka Fal)
तारा ओर उसकी माता सोनो जानते थे कि तारा अब प्रतियोगिता से बाहर है। तारा दुखी थी, परंतु उसके चेहरे पर एक शिकन नही था। वह अपनी माता को राजभवन की सैर करा रही थी। साथ ही अच्छे अच्छे व्यंजन चखा रही थी। अब उत्सव अपने अंतिम पड़ाव पर पहुच चुका था। राजकुमार अपनी जीवन संगिनी के नाम की घोषणा करने मंच पर आए। सब उत्साहित हो प्रतीक्षा कर करे थे। राजकुमार ने कहा, “मैं जिस युवती को अपनी जीवन संगिनी के रूप में देख रहा हूँ वो आप हैं तारा”। अपना नाम सुन तारा विश्वास नहीं कर पा रही थी की राजकुमार ने उन्हें अपने जीवन संगिनी के रूप में चुना है। तारा की माता भी भाव विभोर होगयीं।
उधर बाकी युवतियों ने विद्रोह कर दिया। उनका कहना था जिस युवती ने गुलदस्ता लाया ही नहीं, उसे जीवन संगिनी के रूप में क्यों चुना गया? राजकुमार ने पक्षपात किया है? जितने मुह उतनी बातें होने लगी। इन सबसे राजा क्रुद्ध होगए, एवं राजकुमार से सत्य जानना चाहा। तब राजकुमार ने राजा के साथ-साथ प्रजा को संबोधित करते हुए कहा, “तारा को चुनने का कारण उनकी ईमानदारी है। आप सबको बांझ बीज दिए गए थे। फिर भी सब गुलदस्ते के साथ पहुंची हैं। जबकि तारा ने यह स्वीकारा कि, उसके प्रयासों के बाद भी पौधा नहीं ऊगा। मुझे अपने जीवन में एक ईमानदार जीवन संगिनी की आवश्यकता थी, जो तारा को प्राप्त कर पूर्ण हुई।
सीख :
ईमानदारी का कार्य दिखने और सुनने में कष्ट कर लगता है एवं होता भी है। परंतु, ईमानदारी के वृक्ष पर लगे फल सदैव मीठे होते हैं एवं आत्मा को संतुष्ट करते हैं।