पूर्वांचल मे हार से सकते में पार्टी, दलित पिछड़ेे मतदाताओ कों जोडऩे की कवायद शुरू

वाराणसी, सन्मार्ग। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पश्चिम से पुरब तक भाजपा बडा जानाधार माना जाता था। लेाकसभा के दो चुनावों में जिस तरह से सीटे मिली थी उससे भाजपा का मजबूत आधार बन गया था।पार्टी के रणनीतिकारों से लेकर आम आवाम के बडे वर्ग के बीच मान जाता था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लोकप्रियता चरम रहेगी।

कप्रियता के आगे विपक्षी दल बीते दो चुनाव की तरह धरासायी हो जाएंगे।सपा कांग्रेस की एक होकर चुनाव लडने से भाजपा के सामने राजनीति सकट उत्पन हो गया।वाराणसी लोकसभा से प्रधानमंत्री का तीसरी बार तमाम प्रयास कि बाद महज 1 लाख 52 हजार मत से जीतने के साथ समीप की सीट की चंदौली,जौनपुर,गाजीपुर बलिया सहित 29 सीट पर भाजपा प्रत्याशी का हारना कई सवालों को उत्पन कर दिया है।मोदी है तो मुमकिन है का स्लोगन पूरी तरह धरासायी हो गया है। पूर्वांचल में मजबूत आधार का दावा करने वाले भाजपा के लोग मौन धारण कर लिये है।

भाजपा को पूर्वांचल के जिन सीटों पर जीत मिल सकती थी उन सीटो को हारने से पार्टी नेतृत्व के माथे पर बल पड गया है।पार्टी सूत्रों की माने तो पूर्वांचल में सीटों को हारने का कारण प्रदेश अध्यक्ष व संगठन के महामंत्री का सहयोगी दलों के शिर्ष नेताओं से तालमेल न होना था।लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए सरकार ने जिलों का प्रभार मंत्रियो को दिया गया था।केद्र और प्रदेश सरकार की योजनाए जनता तक नही पहुच पायी।भाजपा से पिछडे मतदताओ को जोडने के लिए प्रदेश संगठन में प्रदेश अध्यक्ष,संगठन महामंत्री,उपाध्यक्ष के साथ ही प्रदेश कमेटी के पदाधिकारी बनाये गये थे जो सार्थक नही हो पाया।

आगामी विधानसभा को देखते हुए पार्टी अभी से जुट गई है प्रदेश से लेकर जिला महानगर संगठन में बडे पैमाने पर बदलाव की संभाावना व्यक्त किया जा रहा है।2014 व 2019 के लोकसभा के चुनाव में दलित व पिछडे वर्ग के मतदाता भाजपा के साथ थे।2024 के लोकसभा चुनाव विपक्षी दलो के एकजुट होकर लडने से दलित व पिछडे वर्ग के मतदाता इडिया गंठबंधन के साथ चले गये।प्रदेश में दलित व पिछडे मतदाताओं को जोडने के लिए पिछडे नेताओं को संगठन में जगह देकर उनके बीच अपना पैठ बनाने का प्रयास कर सकती है।

उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा की सीटो पर जीत दर्ज हासिल करने के लिए संगठन से जुडें पदाघिकारियों केो जिम्मेदारी दी गई थी। वह रणनिति पूरी तरह से धरासायी हो गई पदाधिकारियों से हार के कारणों जबाब मांगा जा रहा है। भाजपा के रणनीतिकार स्थानीय स्तर पर हार के कारणों तलाश में जुट गये है। उत्तर प्रदेश में प्रदेश में संगठन के अध्यक्ष से लेकर निचले स्तर तक के संगठन के पदाधिकारियों में बदलाव किये जाने संभावना व्यक्त किया जा रहा है।

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