वाराणसी, सन्मार्ग। पत्नी के अटल निश्चय व उसकी महिमा का गुणगान करने वाला वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार वट सावित्री का व्रत 6 जून को रखा जाएगा। यह व्रत बरगद के वृक्ष की महिमा का भी गुणगान करता है। इसके अलावा सुहागिन महिलाऐं ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों के लिए उपवास रखती हैं। कुछ महिलाऐं केवल अमावस्या के दिन ही व्रत रखती हैं।

इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग,पति प्रेम और पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक,दु:खप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है। जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र-पौत्र-धन आदि पदार्थों को प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रह्मलोक को प्राप्त करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा,तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है एवं इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। देखा जाए तो इस पर्व के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है।

वृक्ष होंगे तो पर्यावरण बचा रहेगा और तभी जीवन संभव है। भविष्य पुराण के अनुसार देवी सावित्री राजा अश्वपति की कन्या थीं,सावित्री ने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया,लेकिन नारदजी की भविष्यवाणी थी कि- सत्यवान अल्पायु हैं सावित्री के ह्रदय में निरंतर खटकती रहती थी।जब सत्यवान की आयु पूरी होने को आई,तब सावित्री ने विचार किया कि अब मेरे पति की मृत्यु का समय निकट आ गया है यह सोचकर वह भी सत्यभान के साथ काष्ठ लेने जंगल जाने लगी।एक दिन सत्यवान को लकडिय़ां काटते समय मस्तक में महान वेदना उत्पन्न हुई और सावित्री से कहा-प्रिये!मेरे सिर में बहुत व्यथा है,इसलिए थोड़ी देर विश्राम करना चाहता हूँ।’सावित्री अपने पति के सिर को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए।

सावित्री ने उन्हें पहचाना और कहा-आप मेरे पति के प्राण न लें। यमराज नहीं माने और उन्होंने सत्यवान के शरीर से प्राण खींच लिए। सत्यवान के प्राणों को लेकर वे अपने लोक को चल पड़े। सावित्री भी उनके पीछे चल दीं।बहुत दूर जाकर यमराज ने सावित्री से कहा-पतिव्रते! अब तुम लौट जाओ,इस मार्ग में इतनी दूर कोई नहीं आ सकता। सावित्री ने कहा-महाराज पति के साथ आते हुए न तो मुझे कोई ग्लानि हो रही है और न कोई श्रम हो रहा है,मैं सुखपूर्वक चल रही हूँ।जिस प्रकार सज्जनों की संगति संत है,वर्णाश्रमों का आधार वेद है,शिष्यों का आधार गुरु और सभी प्राणियों का आश्रय-स्थान पृथ्वी है,उसी प्रकार स्त्रियों का एकमात्र आश्रय-स्थान उनका पति ही है,अन्य कोई नहीं । सावित्री के पति धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर को आँखें दीं और सावित्री को सौ पुत्र होने का आशीर्वाद दिया एवं सत्यवान के प्राणों को लौटा दिया।इस प्रकार सावित्री ने अपने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया।

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